मौन व्रत से दिव्य वाणी की प्राप्ति: स्वामी सरस्वती
मौन व्रत से दिव्य वाणी की प्राप्ति: स्वामी सरस्वती
पथरगामा से नितेश रंजन की रिपोर्ट
पथरगामा।
स्वामी ब्रह्मलीन सरस्वती का एक माह से चल रहा मौन व्रत 6 मई 2020 को समाप्त हो गया। स्वामी ब्रह्मलीन सरस्वती पथरगामा आर्य समाज मंदिर में 5 अप्रैल 2020 से एक माह के लिए मौन साधना में थे। मौन व्रत समाप्त करने के बाद स्वामी ब्रह्मलीन सरस्वती ने मौन साधना क्या है, मौन साधना का क्या लाभ और मौन साधना का क्या लक्ष्य है, के बारे में विस्तार पूर्वक बताया।
कहा कि मौन का अर्थ है मनन, चिंतन करना। कहा कि मनुष्य को दुःख देनेवाला कौन है? दुःख से बचने का उपाय क्या है? और उस अभीष्ट को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
कहा कि योग दर्शन में उसे हेय, हेय हेतु, हान और हानोपाय कहा गया। कहा कि हेय दुःख है। दुख का कारण हेय हेतु है और दुःख नाशक हान है। दुःख नाशक उपाय को हान उपाय कहा जाता है। इन्हीं चार प्रयोजनों की सिद्धि के लिए साधना करनी चाहिए। स्वामी ब्रह्मलीन सरस्वती ने कहा कि मौन तीन प्रकार के होते हैं। पहला आकार मौन, दूसरा दर्शन मौन, तीसरा काष्ठ मौन। कहा कि मौन साधना में वाणी में दिव्य शक्ति प्राप्त होती है। इस मौन व्रत के दौरान स्वामी जी ने तीन लेख भी लिखे जिनके नाम हैं वेर- अवेर, पहचानो और अभाव। जिन्हें लिपिबद्ध कर पुस्तकें छापी जाएगी। इस मौके पर धनंजय भगत, भवेश आर्य, कपिल भगत, लक्ष्मी देवी, नीलमणि देवी, वीरेंद्र भगत, चन्द्रगुप्त आर्य, लक्ष्मण शास्त्री, मंजू देवी, सोनू शर्मा, आदित्य चौबे, सुमन कुमारी, लाल परी देवी, सोनी भगत, अरुण भगत, विद्या देवी, राजकुमार शर्मा आदि मौजूद थे।
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