Kavi Ke Kalam se……

चंचल मन
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क्यों रे चंचल
मन तू इतना
सागर किनारे
लहरों जितना

मस्त दीवाना
कभी दिखता तू
सैर सपाटे करवाता
पल में तू

वक्त से आंख मिचौली
में भी,पारंगत है
केवल तू ही
कहूं तुझे एक जादूगर भी

भटके हुए यूं ही चलता
आदि अंत का
कुछ भी नहीं है पता
मनमौजी तू है मधुशाला

कभी खुशी कभी ग़म
‌ मिल जाता
कभी उलझा के
फिर सुलझाता

रहस्यमय मन को
‌ किसी ने ना जाना
राज ये मन का
उभर ना पाया

मन‌ पर काबू
नहीं किसी का
कोशिश लाख
करूं मैं जिसका

समय नहीं सुनने का
इसको किस्सा अपना
वश में कभी ना आया
ये तो पागल तन्हां

लालिमा 🙏

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