फसलों की बर्बादी पर अंकुश लगाने के लिए हो पशु कारा की व्यवस्था – पशुओं द्वारा चारा चरने से परेशान किसान कर रहे मांग
नंदलाल परशुरामका की रिपोर्ट
गोड्डा।
पशुओं से फसल के रक्षार्थ किसानों ने पशुकारा (अरगड़ा) खोलने की मांग जिला प्रशासन से की है। महेश शाह , दिलीप कुमार, बालेश्वर पंडित, देवनन्दन साह आदि किसानों का कहना है कि पूर्व में सभी जगह पशु कारा(पशुओं का जेल) की व्यवस्था थी। पशु कारा को साधारण बोलचाल की भाषा में ग्रामीण अरगड़ा कहते थे। फसल चरने वाले पशुओं को पशु कारा में भेजा जाता था।वहां से शुल्क देकर पशु मालिक पशु को घर ले जाते थे। इस विधान के कारण पशु पालक पशुओं को छुट्टा छोड़ने से परहेज करते थे। पशु कारा की व्यवस्था से फसलों की बरबादी पर लगाम लगती थी और पशु मालिक भय खाते थे।लेकिन कुछ वर्षों से प्रशासन की उदासीनता के कारण यह व्यवस्था बन्द हो गई।फलस्वरूप पशु मालिक बेपरवाह हो गए और अपने गाय,बैल, भेड़,बकरियों को छूट्टा छोड़ने लगे।पशु भी खेतों में हरी हरी फसलों को देख कर मुंह मारने लगे।इस बरबादी से किसानों और पशु मालिकों में आपसी वैमनस्य बढ़ने लगा और मारपीट की नौबत आने लगी।लोग कोर्ट कचहरी , थाना जाने लगे।किसानों की मेहनत बेकार होने लगी।किसानों को आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है।खेती करने वाले लोगों को काफी मुश्किल उठानी पड़ रही है।पशु मालिक इतने ढीठ हो गए हैं कि वे अपने पशुओं को रोज खुला छोड़ देते हैं।इसमें कुछ पशु किसानों की खेतों में फसल चरते एवं बर्बाद करते हैं।कुछ पशु शहर की प्रमुख सड़कों पर घूमते फिरते हैं।और मौका लगाकर फलों की दुकानों में हमला करते हैैं। सामानों को बरबाद करते हैं। फलों को खाते हैं। सब्जी की दुकानों में भी अचानक हमला कर सब्जियों को खाते हैं एवं बरबाद करते हैं।कुछ पशु वाहनों की चपेट में आकर विकलांग हो जाते हैं।इस विकट स्थिति से सभी को जूझना पड़ रहा है।इससे उबरने का एक मात्र रास्ता पशु कारा को पुनः खोलने का है । किसानों ने मांग की है कि व्यापक जन हित में पशु कारा अवश्य ही खुलवाया जाय।