मुक्ति के लिए परलोक का ध्यान जरूरी –परमहंस सत्यानंद
मुक्ति के लिए परलोक का ध्यान जरूरी –परमहंस सत्यानंद
पाकुड़
जीवन धारण के बाद सद्गुरु के माध्यम से भक्ति से मुक्ति प्राप्त किया जा सकता है। जिसके लिए सद्गुरु के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव होना है ब्रह्म विद्यालय और आश्रम में पांच दिवसीय सत्संग के समापन के अवसर पर उपायुक्त बातें परमहंस सत्यानंद जी महाराज ने कही।
भक्तों- शिष्यों को संबोधित करते हुए परमहंस जी ने कहा कि जीवन में सभी कर्मों को करते हुए अगर गुरु के प्रति लगाव होता है, तो जीव की मुक्ति संभव है ।
इस प्रकरण को अनेक उदाहरणों के साथ परमहंस जी ने कहा कि सभी लोकों पर अधिकार के बाद रावण भक्ति विहीन होने के चलते और अहंकारी होने के कारण विनाश को प्राप्त हुआ।
रावण जैसे महाप्रतापी और विद्वान का प्रभाव हुआ। जीवन में अहंकार से दूर सेवा भावना से ज्ञान अर्जित कर मनुष्य को मुक्ति मिलेगी। भक्ति के चलते ही विभीषण लंका का स्वामी बना।
समर्पण में राधा भाव का होना आवश्यक है परिणाम स्वरूप आज हम राधा के भक्ति और समर्पण के साथ श्रीकृष्ण के पहले श्री राधा का नाम स्मरण करते ।राधा कृष्ण की ऊर्जा और शक्ति का संवर्धन करती है।
श्री कृष्णभाव में रहने के कारण व्यक्ति पूज्य बन जाता है ।श्री कृष्णा किसी भी राज्य के अधिकारी नहीं होने के बाद भी द्वारकाधीश , मथुरापति कहे जाते हैं। यद्यपि व्यवहार रूप में मथुरा और द्वारका के स्वामी कोई और रहे।
सत्संग में बिहार, बंगाल और झारखंड के अनेक जिलों के भक्तों की उपस्थिति रही।
विक्रमशिला विद्यापीठ के कुलपति डॉ रामजन्य मिश्र, झारखंड राजभाषा साहित्य अकादमी के सचिव सच्चिदानंद के साथ ही पाकुड़ के भक्तों में राजीव रंजन पांडे, बृजेंद्र ओझा, चंदन तिवारी ,अरविंद सिंह, राजेश सिंह, भानु प्रताप पांडे, बासुकीनाथ पांडे, इत्यादि कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे।
समापन के दिन सद्गुरु सरकार की आरती हुई जिसमें विशेष रूप से महात्मा ओंकारानंद ,महात्मा विशुद्धानंद, महात्मा शब्द योगानंद, महात्मा बागेश्वरानंद, महात्मा शब्द योगानंद महात्मा प्रेम योगानंद, महात्मा ज्ञान सुधानंद, महात्मा संपूर्णानंद, महात्मा अटल प्रकाशानंद इत्यादि उपस्थित थे।
आरती के बाद भंडारा भी हुआ। जिसमें हजार से अधिक भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।