Godda News:हूल दिवस पर याद किए गए हूल शहीद चानकु महतो

हूल दिवस पर याद किए गए हूल शहीद चानकु महतो

गोड्डा

168वां हूल दिवस चानकु महतो स्मारक स्थल रंगमटिया में मनाया गया। मौके पर सभी ने हूल विद्रोह में शहिद हुए चानकु महतो परगनेत की मूर्ति पर पुष्प, धूप- दीप अर्पित किया।

कार्यक्रम का आयोजन चानकु महतो हूल फाउंडेशन द्वारा किया गया था। मौके पर पहुंचे अतिथियों ने बताया कि 30 जून 1855 ई में संथालपरगना के विभिन्न हिस्सों के तत्कालीन तमाम नेतृत्वकर्ता सिदो कान्हो,चानकु महतो परगनेत, राजवीर सिंह, बैजल सोरेन, चंपय मांझी, लखन मांझी, हड़मा देशमांझी, साम परगनेत , रंजीत परगनेत, बेचु ग्वाला, चालो जोलहा, रामा गोप आदि दर्जनों आंदोलनकारियों ने अपने- अपने समर्थकों संग हजारों हजार की संख्या में सिदो मुर्मू के आह्वान पर बरहेट अंचल के पाचकाठीआ में एकत्रित हुए और संगठित होकर ब्रिटिश राज के विरुद्ध विद्रोह का विगुल फुंका।

तमाम आंदोलनकारियों ने सिदो मुर्मू को ब्रिटिश के विरुद्ध जारी इस संगठित विद्रोह का नेता मानकर सिदो के अगुआई में मरते दम तक लड़ने का संकल्प लिया। सिदो के इस अभियान में उनके भाई बहनों कान्हो मुर्मू, चांदो मुर्मू ,भेरो मुर्मू, फुलो मुर्मू, झानो मुर्मू ने भी कदम से कदम मिलाकर मरते दम तक साथ दिया।

ब्रिटिश राज के खिलाफ जारी इस सामुहिक विद्रोह को ही अंग्रेजी सत्ता और इतिहास कारों ने “हूल” नामकरण किया जिसे हूल या संथाल विद्रोह या संताल हूल या हूल विद्रोह के नाम से जाना जाता है।

छोटानागपुर पठार में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष और विद्रोह के अनेकों उदाहरण इतिहास में मौजूद है। जैसे चुआड़ (कुड़मि) विद्रोह, कोल विद्रोह, पहाड़िया विद्रोह, संताल विद्रोह, मुंडा विद्रोह आदि।

सभी विद्रोह में हजारों हजार आदिवासियों स्थानीयों ने आजादी की लड़ाई लड़ा और प्राणों की आहुति दी लेकिन हूल सबसे बृहद और दमदार संगठीत विद्रोह था । इस विद्रोह की ख्याति उस समय भी पूरे दुनिया में थी और विश्व के पटल पर चर्चा का विषय बना था।

छोटानागपुर पठारी भूभाग में जितने भी विद्रोह हुए उनके अगुआ के समुदाय नाम से ही विद्रोह का नामकरण अंग्रेजी सत्ता करती थी क्योंकि विद्रोह का नेतृत्व कोई पूर्व से ख्यातिप्राप्त नेताओं द्वारा नहीं होता। यही वजह था कि जब अंग्रेज अधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारियों को पुछते कि ये विद्रोह की घटना को किसने अंजाम दिया तो अधिकारी द्वारा नाम नहीं जानने के कारण उस क्षेत्र या गांव के नाम या जिस समुदाय का वह इलाका है उस समुदाय का नाम उनके जानकारी में होता वही नामकरण कर अंग्रेज अधिकारी को बताते थे।

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इसी कारण अंग्रेज अधिकारी भी विद्रोह का नामकरण समुदाय के नाम से करके सारा कार्यवाही आगे करते और बाद में इतिहासकार भी इसी नाम का उल्लेख इतिहास में करते रहे हैं ‌। इसलिए ये समझना कि जो विद्रोह जिस समुदाय के नाम से नमकारीत है वह विद्रोह सिर्फ वही एक समुदाय ने ही नहीं बल्कि संबंधित क्षेत्र के सभी समुदायों ने लड़ाई लड़ी इसलिए जन विद्रोह का स्वरूप मिला। कोई भी आंदोलन आंदोलन से जन आंदोलन में तभी परिवर्तन होता जब संबंधित क्षेत्र के अधिकतर लोग आंदोलन में शामिल होते हैं।

मौके पर मुख्य रुप से फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष संजीव कुमार महतो और कांशीबाई गणपत कालेज, रांची के निदेशक रविंद्र कुमार महतो , कुड़मि विकास मोर्चा के जिला अध्यक्ष दिनेश कुमार महतो, कुड़़मालि भाखि-चारि आखड़ा के गोड्डा चेंघी के प्रमुख किशोर कुमार महतो, पंकज झा , संजय मंडल, संदीप कुमार महतो, चंद्रशेखर , आशीश कुमार आदि दर्जनों लोग उपस्थित रहे।

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