परसा के क्वारांटीन केंद्र पर जानवरों की तरह रह रहे प्रवासी मजदूर
परसा के क्वारांटीन केंद्र पर जानवरों की तरह रह रहे प्रवासी मजदूर
-प्रशासनिक व्यवस्था की खुल रही कलई
हनवारा से जावेद अख्तर की रिपोर्ट
हनवारा:
‘दर्द भी किनसे बयां करू साहब। बड़ी मुश्किल से अपने राज्य एवं जिला वापस आये हैं। यहां भी हमलोगों को बदतर हालात से गुजरना पड़ रहा है। न तो खाने की व्यवस्था और न ही रहने की व्यवस्था है। पानी पीने के लिए तरस रहे है। एक छेद वाली दरी (चट्टी) पर 37 लोगो को रहना पड़ रहा है।इसमें महिला भी शामिल हैं। हमलोगों ने इसकी शिकायत भी की लेकिन अभी तक किसी तरह का कोई संज्ञान नही लिया गया है।’
यह दर्द भरी दास्तान महागामा के क्वारंटाइन केंद्र की है । यहां शिफ्ट किए गए प्रवासी मजदूरों की कहानी प्रशासनिक व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है । जिला प्रशासन के लाख दावे के बावजूद क्वारंटाइन
केंद्र पर प्रवासी मजदूरों को समुचित व्यवस्था नही मिल रही है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? आखिर इनलोगो के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? जिला प्रशासन के सभी दावे को प्रवासी मजदूरों की दर्द भरी दास्तान मुंह चिढ़ा रहा है। इसकी ही बानगी महागामा प्रखंड स्थित मध्य विद्यालय परसा के क्वारंटाइन सेंटर की है। दूसरे राज्य से वापस लौटे करीब 50 मजदूर क्वारंटाइन सेंटर में क्वारन्टीन हैं। ये लोग तेलंगाना राज्य के हैदराबाद से वापस लौटे हैं। इनलोगो ने बीते शुक्रवार की देर रात्रि एक वीडियो वायरल कर क्वारंटाइन सेंटर में हो रही परेशानियों को साझा किया। इनलोगो का कहना है कि हमलोगों को भर पेट खाना भी नही दिया जा रहा है। इस सेंटर में 6 महिला समेत कुल 37 व्यक्ति हैं। इनलोगो को सिर्फ एक दरी दिया गया है। उसमें भी पूरी तरह से दरी में जगह जगह बड़ी बड़ी छेद है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। साथ ही साथ इन लोगों को रात करीब 10 बजे तक खाना नही खिलाया गया था। यह बहुत बड़ी लापरवाही है। एक ओर जिला प्रशासन प्रवासी मजदूरों के क्वारंटाइन केंद्रों के लिए आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराने की बात कह रहा है,
वहीं दूसरी ओर इनलोगो की पीड़ा सुनने वाला कोई नही। आगे वह लोग बताते है कि हमलोगों का घर इस गांव में नही है। फिर भी हमलोगों ने सरकारी आदेश के अनुसार यहां 14 दिन तक रहने का ठान लिया है लेकिन इस तरह के बदतर सुविधा में कैसे रहेंगे। ऊपर इस रमजान के महीना चल रहा है। न तो इफ्तार का इंतजाम किया गया है और न ही सहरी का। हमलोग काफी बेबस हो गए है। शनिवार को भी करीब 14 मजदूरों इसी क्वारंटाइन सेंटर में आये हुए है।
परसा के क्वारांटीन केंद्र पर जानवरों की तरह रह रहे प्रवासी मजदूर
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