इबादत की रात होती है शब-ए-बारात,गुनाहों से की जाती है तौबा – कोरोनावायरस के कारण इमारत ए सरिया ने पत्र जारी कर की घर पर ही इवादत करने की अपील
- इबादत की रात होती है शब-ए-बारात
– गुनाहों से की जाती है तौबा
– कोरोनावायरस के कारण इमारत ए सरिया ने पत्र जारी कर की घर पर ही इवादत करने की अपील
हनवारा से जावेद अख्तर की रिपोर्ट
हनवारा।
शब- ए-बरात इस्लाम मजहब का पर्व है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार यह इबादत की रात होती है। इस साल शब-ए-बारात पर्व 9 अप्रैल को मनाया जाएगा। हालांकि अबकी बार यह पर्व कुछ अलग तरीके से मनाना होगा चूंकि पुरे देश में कोरोना महामारी धीरे धीरे पांव पसार रहा है।जिसके चलते लोग अपने घर में अल्लाह की इबादत करेंगे।
वहीं इमारते सरिया ने एक पत्र जारी करते हुए अपील किया है कि इस साल सभी लोग अपने अपने घर में अल्लाह की इबादत करें। चूंकि कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है।कोई कब्रिस्तान पर नही जाएं। घर पर ही अल्लाह की इबादत में लगे रहे। कहा जाता है कि शब-ए-बारात में इबादत करने वाले लोगों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। इसलिए लोग शब-ए-बारात में अल्लाह की इबादत करते हैं और उनसे अपने गुनाहों को माफ करने की दुआ मांगते हैं।
शब-ए-बारात का अर्थ:
मान्यता के अनुसार , शब-ए-बारात को एक प्रकार से रमजान में रखे जाने वाले रोजे के लिए खुद को तैयार करना माना जाता है। यह भी मान्यता है कि इस रात लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा करते हैं। यहां शब से आशय रात है और बारात (बअरात) का अर्थ बरी होना है। हिजरी कैलेंडर के अनुसार, यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरु होती है।
ऐसे मनाया जाता है यह पर्व:
मुस्लिम मजहब के लोग इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। बकायदा इसकी तैयारियां की जाती हैं। घरों में तमाम प्रकार के पकवान जैसे हलवा, बिरयानी, कोरमा आदि बनाया जाता है। इबादत के बाद इसे गरीबों में बांटा जाता है। शब-ए-बारात में मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास तरह की सजावट की जाती है। लाइट्स लगाई जाती है। वहीं बुजुर्गों व अपने करीबियों की कब्रों पर चिराग जलाए जाते हैं और उनकी मगफिरत की दुआंए मांगी जाती हैं।
चार मुकद्दस रातों में से एक है ये रात:
अरब में इस त्योहार को लैलतुन बराह या लैलतुन निसफे मीन शाबान के नाम से जाना जाता है। जबकि दक्षिणी एशियाई देशों में इसे शब-ए-बारात कहा जाता है। इस्लाम में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है, जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है।