आखिर क्यों नहीं बनाया जा रहा है इसे पर्यटक स्थल?
- *शक्तिपीठ* : *माँ चिहारी पीठ*।।
झारखंड राज्य के गोड्डा जिले के अन्तर्गत पथरगामा प्रखंड मुख्यालय से पूरब करीब 2 किलोमीटर की दुरी पर ईशान कोण में अवस्थित है माँ चिहारी शक्तिपीठ। यह क्षेत्र बाबा द्वारिका दास की तपोभूमि रह चुकी है। यहाँ पन्चमुण्डासन पर माँ चिहारी विराजमान है। पथरगामा के चिहारी पीठ के शमशान में पहाड के ऊपर तंत्र सम्राट परम पूज्य श्री गुरुदेव स्वामी अभयानंद परमहंस जी महाराज ने कौल आश्रम की स्थापना 1982 में अश्विन नवरात्र के महाअष्टमी तिथि को किये । साथ ही यहाँ पर सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर शिवगंगा (बाबाजी, पोखर) विद्यमान है, इस पोखर के मध्य में अमृतकुंड है, सत्तर के दशक तक इस पोखर का जल स्थानीय लोग पीने के काम में लाते थे, परन्तु कालान्तर में मछ्लीपालन के कारण गोबर एवं रसायन का प्रयोग के कारण जल पीने योग्य नही रहा । कभी इस पोखर के पास पहाड पर भगवान विष्णु के चरण चिन्ह भी पड़े थे। माँ चिहारी पीठ के महाशमशान में ही स्थित है गृहस्थ सन्त बाबा सतन महतो की समाधि सह तान्त्रिक पंचवटी । कहा जाता है की जिस प्रकार शेरनी के दुध को धारण करने की क्षमता सोने की पात्र मे होती है, बांकी अन्य पात्र फट जाता है। ठीक उसी प्रकार साधना को साधने की क्षमता ,साधक में ही होती है, उनमे से ही एक थे गृहस्त साधक बाबा सतन महतो। इनका पूरा जीवन लोक कल्याण में ही रहा । इस पीठ के बगल मे ही स्थित है शिक्षा का मन्दिर DAV पब्लिक स्कूल, पथरगामा। इस चिहारी पीठ पर जहाँ सुर्य ढलते ही सौम्य और दिव्य वातावरण का निर्माण होता है, शमशान की विभिषिका भी सौम्य हो जाती है। दिव्य वातावरण में दिव्य भाव की अभिव्यक्ति होती है। भारत के सुदूर क्षेत्रों से साधक , साधना करने यहाँ आते है और सप्ताह तक निवास करते है, जिसकी व्यवस्था मायेर प्रेमी मंडल करता है। इस शक्तिपीठ में महाश्मशान के मुख्य द्वार पर माँ तारा का दरवार स्थित है, जहाँ बिना किसी मन्त्र और तंत्र के मनोवान्छित फल मिलता है। माँ तारा के दर्शन मात्र से रोग और शोक का नाश हो जाता है।इस पीठ में वर्ष 1986 में वैष्णवी माँ दुर्गा का पूजन प्रारम्भ हुआ, धीरे-धीरे यहाँ पर मन्दिर का भी निर्माण हो गया। आज यहाँ पर चैत्र मास में भव्य पूजन का आयोजन होता है। पहले यह क्षेत्र घने जंगलों से आच्छादित था। कालान्तर में वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण इस क्षेत्र का स्वरुप ही बदल गया है।
यहाँ हर रोज साधकगण संध्या के समय आकर अपनी साधना में लगे रहते है। साधक जब शंखनाद करते है तो संग-संग भैरव की टोली भी अपनी भाषा मे सुर में ताल मिलाते नजर आते है।
परन्तु अफसोस इस ओर सरकार के नुमाइंदो की नजरें इनायत नही हो रही है। आज तक यह क्षेत्र पर्यटन केंद्र के रुप मे विकसित नही हो पाया है। तात्कालीन मुखिया (ग्राम पंचायत-चिलकारा गोविंद) श्री गोपाल कृष्ण दास एवं समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के पहल पर पूरे शक्तिपीठ के बारे में TV चैनल पर खबरें प्रकाशित होने के बाद CM झारखण्ड ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए तात्कालीन पर्यटन सचिव श्री सजल चक्रवर्ती, उपायुक्त गोड्डा, श्री के. रवि कुमार को इस दिव्य धरा धाम में भेजा था । इस शक्तिपीठ को पर्यटन के क्षेत्र मे विकसित करने हेतू कार्य योजना भी बनाई गई थी, जो लगभग 3 करोड कुछ रुपये का था। आज तक वह पत्र समाहरणालय, गोड्डा में फाइलों के बोझ तले दबा हुआ है, जिस पर आज तक हुकुमत के किसी हाकिमों की नजरें नही पडी है। स्थानीय जन प्रतिनिधियों नें भी घोषणा की झडी लगाने मे कोई कसर नही छोड़ा है, पर परिणाम वही ढाक के तीन पात ही साबित होती चली आयी है। यदि इस शक्तिपीठ पर हुकुमत के हाकिमों की नजरें पड़ जाय तो इस वीरान जगह पर चमन के फुल खिलने लगेंगे। मुकम्मल व्यवस्था हो जाय, तो यहाँ के लोगो को रोजगार भी नसीब हो पायेगा, साथ ही सरकार को यहाँ से काफी राजस्व की प्राप्ति भी हो जायेगी। बस जरुरत है संकल्प लेने की।
इससे पहले की यह क्षेत्र गुमनामी की मोटी चादर से ढक जाता। धुन के पक्के मुखिया श्री हेमन्त कुमार पण्डित की पारखी नजर इस क्षेत्र पर पडी, जिन्होनें अपनी संकल्प शक्ति के बल पर तकरीबन 7 योजनाओं को यथा मुक्ति धाम, चबूतरा मरम्म्ती कार्य, सोलर जलमीनार, दर्जन भर बैठने हेतू बैंच, लायटिंग, नया चबूतरा निर्माण, जल संचय हेतू सोख्ता निर्माण आदि योजनाओं को माँ चिहारी पीठ के धरा धाम पर उतारने में कामयाब हो पाया। आज चिहारी पीठ, दुधिया रोशनी में जगमगा उठा है।