मेरी कलम से, जरा हटके :- मनोज राही
मेरी कलम से, जरा हटके
राहें दुर्गम और कठिन है ,
पर मंजिल दूर नहीं है ,
लेकर प्रण जो निकल पड़े पथ पर ,
पाता मंजिल भी वही है ।।चलो तुम भी हो तैयार ,
यज्ञ वेदी पर शीश झुकाने को,
मानव के रूप में जन्म का ,
कुछ कर्ज यहां चुकाने को ।।हम भी बन सकते गुरु मुनि संदीपन,
गुर वशिष्ठ, द्रोणाचार्य और विश्वामित्र
त्याग दिए ऋषि दधीचि ने प्राण,
जगत कल्याण के लिए कर दी अपनी अस्थियां दान ।।ज्ञानदान से बढ़कर दुनिया में और न कोई दान ,
असुर से सुर बने बाल्मीकि गढ़े ग्रंथ रामायण महान
, बुद्ध वचन से बदले अंगुलिमाल जो हरते थे प्राण,
धन दौलत सुख दे सकते ज्ञान से मिलता त्राण, ।।वासना, तृष्णा ऐसी मरीचिका,
जो ना कभी मिल मिट पाएगा ,
फोड़ डाले नयन सूर ने लिखे ग्रंथ सूरदास बने ,
रत्ना से अपमानित हो रामबोला तुलसीदास बने, ।।मिली अवहेलना विधोतमा से तो कालिदास महान बने,
प्रखरता हर नर नारी में है जिसने समझा वह खास बन,
आओ चुने डगर हम भी कुछ ऐसा और चले अविरल,
जग में मानवता के कल्याण के लिए एक मिशाल बनें ।।आइए नया इतिहास लिखें __
हम हैं डॉ मनोज कुमार राही
घटियारी, गोड्डा, झारखंड ।